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खाटू श्याम जी को मिला वो वरदान, जिसने उन्हें कलियुग का भगवान बना दिया!

Khatu Shyam Ji idol decorated with flowers and devotees praying at Khatu Temple in Rajasthan.

The divine idol of Khatu Shyam Ji at Khatu Dham, Rajasthan — where devotion meets the blessing of Lord Krishna’s boon.

Author: BhaktiParv.com


भारत की पवित्र धरती पर जब भी धर्म और अधर्म के बीच युद्ध हुआ है,
तब भगवान ने हमेशा अपने भक्तों को ऐसा वरदान दिया है,
जो आने वाले युगों तक मानवता के लिए मार्गदर्शक बन गया।

ऐसा ही एक दिव्य वरदान मिला था —
खाटू श्याम जी को,
जो महाभारत काल के महान योद्धा बर्बरीक थे।

आइए जानते हैं,
1.खाटू श्याम जी कौन थे?
2.उन्हें भगवान श्रीकृष्ण से क्या वरदान मिला था?
3.और क्यों उन्हें “कलियुग का भगवान” कहा जाता है?

👉 🎥 भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया वो वरदान जिसने बर्बरीक को बनाया खाटू श्याम जीपूरा वीडियो देखें


खाटू श्याम जी कौन थे?

खाटू श्याम जी का असली नाम था बर्बरीक,
जो भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र थे।

बचपन से ही उनमें असाधारण शक्ति, साहस और भक्ति थी।
उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या करके उनसे तीन दिव्य बाण (तीर) प्राप्त किए।
इन बाणों की शक्ति इतनी अद्भुत थी कि —

“पहला बाण सभी शत्रुओं को चिन्हित करता था,
और दूसरा बाण उन सबका अंत कर देता था।”

इतनी महान शक्ति पाने के बाद भी बर्बरीक के हृदय में विनम्रता और दया थी।
उन्होंने प्रतिज्ञा ली थी कि —

“मैं सदैव उसी पक्ष का साथ दूँगा जो युद्ध में हारता हुआ दिखे।”


बर्बरीक और महाभारत युद्ध

महाभारत युद्ध आरंभ होने वाला था।
दोनों पक्ष — कौरव और पांडव — अपनी पूरी शक्ति के साथ तैयार थे।

तभी बर्बरीक भी युद्धभूमि की ओर प्रस्थान करने लगे।
लेकिन उनके मन में एक शंका थी —

“मैं किसका साथ दूँ? जो पक्ष हारता हुआ दिखे, उसे ही तो सहारा दूँगा।”

उनका यह वचन धर्मसंकट का कारण बन गया,
क्योंकि वे जिस पक्ष में शामिल होते,
वह पक्ष तुरंत विजयी हो जाता।


भगवान श्रीकृष्ण से भेंट

युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण के वेश में बर्बरीक के पास पहुँचे।
उन्होंने मुस्कराकर पूछा —

“वत्स, तुम किसका साथ दोगे इस महायुद्ध में?”

बर्बरीक ने विनम्रता से उत्तर दिया —

“प्रभु, मैं उसी पक्ष का साथ दूँगा जो हारता हुआ प्रतीत होगा।”

कृष्ण ने उनकी अद्भुत प्रतिज्ञा सुनी और सोचा —
अगर यह वीर युद्ध में उतरा, तो संतुलन बिगड़ जाएगा।
क्योंकि उसके तीन बाण पूरे युद्ध को पलभर में समाप्त कर सकते हैं।


श्रीकृष्ण की परीक्षा

भगवान कृष्ण ने उसकी शक्ति की परीक्षा लेने के लिए कहा —

“वत्स, क्या तुम अपनी शक्ति दिखा सकते हो?”

बर्बरीक ने एक बाण चलाया —
जिससे पूरे वृक्षों की पत्तियाँ एक ही पल में कटकर गिर गईं,
और अंत में वह बाण आकर कृष्ण के चरणों में ठहर गया।

कृष्ण अब समझ गए —
यह योद्धा साधारण नहीं है,
लेकिन इसका युद्ध में उतरना धर्म का संतुलन बिगाड़ देगा।


श्रीकृष्ण का अनुरोध और बर्बरीक का बलिदान

कृष्ण ने तब बर्बरीक से कहा —

“वत्स, धर्म की रक्षा के लिए मुझे तुम्हारा शीश चाहिए।”

बर्बरीक ने मुस्कराते हुए कहा —

“प्रभु, यदि मेरा सिर आपके कार्य में लग सकता है, तो यह सौभाग्य है।”

और उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के
अपना शीश श्रीकृष्ण के चरणों में अर्पित कर दिया।

मरने से पहले उन्होंने कहा —

“प्रभु, मेरी केवल एक इच्छा है —
मैं इस महायुद्ध का साक्षी बनना चाहता हूँ।”

कृष्ण ने कहा —

“तथास्तु! तुम्हारा शीश युद्ध समाप्ति तक देखता रहेगा।”


भगवान श्रीकृष्ण का वरदान

युद्ध समाप्त होने के बाद श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से कहा —

“वत्स, तुम तीनों लोकों में सबसे श्रेष्ठ बलिदानी हो।
तुमने धर्म की रक्षा के लिए अपना शीश अर्पित किया है।
इसलिए मैं तुम्हें वरदान देता हूँ —
कि कलियुग में तुम्हारी पूजा मेरे नाम से होगी।
तुम ‘श्याम’ नाम से प्रसिद्ध होओगे,
और जो भी तुम्हें सच्चे मन से पुकारेगा,
उसकी हर मनोकामना पूरी होगी।”

इसी क्षण से बर्बरीक बन गए खाटू श्याम जी,
जो कलियुग के भगवान कहलाए।


क्यों कहलाए कलियुग के भगवान?

क्योंकि उनका वरदान था —

“जो भी हारता हुआ, टूटा हुआ, या निराश व्यक्ति
सच्चे मन से मुझे पुकारेगा,
मैं उसका सहारा बनूँगा।”

इसलिए खाटू श्याम जी को “हारे का सहारा श्याम” कहा जाता है।
वे उन भक्तों के भगवान हैं जो जीवन की लड़ाइयों में हार मान चुके हों,
और फिर भी विश्वास रखते हों।


खाटू श्याम मंदिर का महत्व

राजस्थान के सीकर जिले के खाटू गाँव में स्थित है
प्रसिद्ध खाटू श्याम मंदिर,
जहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।

माना जाता है कि यहीं पर बर्बरीक का शीश भूमि से प्रकट हुआ था।
मंदिर में आज भी वह शीश पूजित रूप में विराजमान है।
भक्त जब “श्याम बाबा” का नाम लेते हैं,
तो उनके जीवन की हर कठिनाई दूर होती है।


खाटू श्याम जी की भक्ति और उनका संदेश

खाटू श्याम जी का जीवन हमें तीन बातें सिखाता है —

  1. भक्ति का अर्थ है समर्पण।
  2. बलिदान सबसे बड़ा धर्म है।
  3. भगवान उनके साथ हैं जो सच्चे मन से विश्वास करते हैं।

श्याम जी का संदेश बहुत सीधा है —

“जब सब रास्ते बंद हो जाएं,
तब बस ‘श्याम’ नाम पुकारो,
वह जरूर सुनेंगे।”


खाटू श्याम जी का फाल्गुन मेला

हर साल फाल्गुन माह में खाटू धाम में विशाल मेला लगता है।
देश–विदेश से भक्त पैदल यात्रा करते हुए यहाँ पहुँचते हैं।
भक्त “जय श्री श्याम” के जयकारे लगाते हुए मंदिर तक आते हैं।
कहा जाता है कि इस यात्रा से व्यक्ति के पाप मिट जाते हैं
और उसके जीवन में सुख–शांति आती है।


खाटू श्याम जी की महिमा

इसलिए कहा जाता है —

“जो श्याम को सच्चे मन से पुकारे,
उसकी नैया पार हो जाती है।”

Final Thoughts

खाटू श्याम जी की कथा केवल एक धार्मिक कहानी नहीं,
बल्कि जीवन का गहरा संदेश है।

उन्होंने शक्ति होते हुए भी विनम्रता चुनी,
युद्ध का भाग बन सकते थे, पर धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दिया।

श्रीकृष्ण का दिया हुआ वरदान आज भी जीवित है —
हर उस दिल में जो “श्याम” नाम पुकारता है।

जब जीवन में अंधकार बढ़े,
तो दीप जलाने की बजाय बस एक बार पुकारो —
“जय श्री श्याम!”
वो खुद आपके जीवन में प्रकाश बनकर आएंगे। 🙏

FAQs

प्र.1: खाटू श्याम जी कौन हैं?

वे महाभारत काल के वीर बर्बरीक हैं, भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र।

प्र.2: खाटू श्याम जी को क्या वरदान मिला था?

भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया था कि कलियुग में उनकी पूजा “श्याम” नाम से होगी,
और जो भक्त उन्हें सच्चे मन से पुकारेगा, उसकी मनोकामना पूर्ण होगी।

प्र.3: खाटू श्याम जी को ‘हारे का सहारा’ क्यों कहा जाता है?

क्योंकि वे उन लोगों की सहायता करते हैं जो निराश, टूटा या हारा हुआ महसूस करते हैं।

प्र.4: खाटू श्याम मंदिर कहाँ है?

राजस्थान के सीकर जिले के खाटू नगर में स्थित है — यह मंदिर विश्व प्रसिद्ध है।

प्र.5: खाटू श्याम जी की पूजा कब करनी चाहिए?

हर माह की एकादशी तथा विशेष रूप से फाल्गुन मास के मेले में उनकी पूजा अत्यंत शुभ मानी जाती है।

Category: Khatu Shyam Ji | Bhagwan Krishna | Hindu Festivals

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